बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहरों में दूसरे समाज के लोगो अग्रजो की मूर्ति लगी है लेकिन आदिवासी समाज अग्रज मूर्ति ज्यादा नहीं लगी हैं , अंग्रेजों से लोहा लेने वाले आदिवासी समाज बहादुर समाज और देश के लिए लड़ने वाले आदिवासी योद्धा को प्रदेश के लोग ही नहीं जानते , बड़े भवनों का नामकरण भी आदिवासी समाज के योद्धाओं केनाम होना चाहिए जिसने देश और समाज के कुछ नहीं उसकी फोटो लगी है, जिसने राजनीतिक सुख भोगा उनकी मूर्ति लगी हैं उनके नाम से कई शासकीय भवनों और सड़कों का नाम है ,जिन आदिवासी योद्धाओं ने साधनविहीन होते हुए अंग्रेजी सेना को धूल चटा दी उनका कोई नामलेवा नहीं है, सीधा साधा आदिवासी समाज स्वार्थी लोगों के हाथों की कठपुतली बन कर अपने , पूर्वज,अपने इतिहास अपने अधिकार को नहीं समझ पा रहा है, स्वार्थी लोगों जो उनका हक मार रहे है वो उनका समर्थन नहीं करना चाहते , मुंह में कुछ और करनी कुछ है इसको सीधा साधा आदिवासी समाज समझ नहीं पा रहा है ,अपनी जमीन पर अपने पूर्वजों के नामकरण और मूर्ति लगाने की मांग नहीं कर पा रहा है संकोच करता है , समाज के कृमि लेयर और नेता म लोगों को बंगले में घुसने नहीं देते अपमान करते है , समाज को इसको समझना होगा , ऐसे कृमि लेयर नेता और लोगो से बचना होगा शांतिपूर्ण तरीके से उनसे दूरी बनानी चाहिए जो सगा समाज का नहीं वो किसी का नहीं ऐसे लोगों से सामाजिक दूरी बनाना होगा जो अपने पूर्वजों का नहीं वो किसी का नहीं अपनीर धरती में अपनी बात कहने और करने की झिझक रखने वाला आदिवासी नहीं हो सकता। चौक चौराहों में राजा की तरह दूसरे समाज की मूर्ति लगी है लेकिन आदिवासी शहीद की मूर्ति और नामकरण गायब है जिनका रोज चरणवंदन समाज के सभी को करना चाहिए सुविधाविहीन हो अंग्रेजों से लड़ने वाले देश की रक्षा करने सभी आदिवासी शहीदों को प्रणाम है।और मौन रहने आदिवासियों को भी प्रणाम है।