मल्हार के किसान यदुनंदन वर्मा का कमाल,जैविक खेती से बैगनी ,पीली गोभी और ब्लेक राइस का उत्पादन।

बिलासपुर – मस्तूरी विधानसभा के मल्हार के युवा प्रगतिशील किसान यदुनंदन वर्मा ने जैविक खड़के जरिये नीली ,पीली गोभी के साथ ब्लेक राइस की खेती की है।रंग बिरंगी फूल गोभी को लेकर किसान वर्मा चर्चित हो गए है। यदुनंदन वर्मा के मुताबिक इन सब्जियों में ज्यादा पौस्टिक तत्व है जो लोगो के स्वास्थ के लिए फायदेमंद होगा। वर्मा ने इससे पहले भी जैविक खेती से कई प्रकार के सब्जियां उगाई है साथ ही उन्होंने अपने 5 सौ स्क्वेअर फिट के छत में क्यारी बनाकर विभिन्न किस्म के सब्जियों को जैविक पद्धति से तैयार किया है। किसानों को भी प्रेरित करने हमेशा सजग रहने वाले यदुनंदन ने जुलाई माह में उन्होंने ब्लेक राइस (काला चावल) की खेती भी की। पीला और बैगनी फूलगोभी को प्रयोग बतौर लगाया था और अब वे इस फुलगोभी के उत्पादन से सन्तुष्ट है, भविष्य में इसकी खेती का रकबा बढ़ाएंगे। इस फुलगोभी मे स्वाद के साथ साथ प्रचुर मात्रा मे विटामिनस एन्टीआक्सीडेंट भी है जिससे शरीर की इम्युनिटी भी बढ़ती है। केरोटीन के वजह से फुलगोभी का रंग पीला है।
औषधीय गुण– – अन्य फुलगोभी मे प्रोटीन नहीं के बतौर होता है जबकि इसमे अधिक मात्रा मे होता है । इसमें कैलसियम , फासफोरस , मैग्नीशियम , जिंक आदि पाए जाते है । जो की बुजुर्ग एवं गर्भवती महिलाओं के लिए अति आवश्यक है ।
जलवायु — इस फुलगोभी के खेती के लिए ठंडी एवं आद्र जलवायु कि आवश्यकता होती है।
उपयुक्त मिट्टी— इसकी खेती के लिए बलवई डोमट मिट्टी काफ़ी उपयुक्त होतीं है, इसकी बोवाई का सही समय सितंबर से अक्टूबर सही होता है और इसकी खेती अन्य सफेद फुलगोभी की तरह होता है ।
महाराष्ट्र मे इस फुलगोभी की किम्मत 80 रूपये प्रति किलो है ।
जैविक खेती के कारण किसान यदुनंदन के खेत मे कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम है जींस की वजह से फुलगोभी का साइज छोटा है । इस क्षेत्र के लोग जैविक खेती से उत्पन्न फसल के क़ीमत नहीं समझ रहे है लोगों को 50 रूपये प्रति किलो बहुत ज्यादा लग रहा है, उनका कहना है वे अपने खेती का तरीका बदल कर कचड़ा पैरा से मल्चिग कर कार्बनिक पदार्थों का मात्रा बढ़ाएंगे जिससे मित्र जीवों मे बढ़ोत्तरी होगी जो सभी प्रकार का पोषक तत्वों के लिए जरूरी है। उन्होंने किसानो से अनुरोध किया कि जैविक खेती पर ध्यान दे गोठान मे वर्मी कंपोष्ट खाद है उसका स्तेमाल करे । इससे हमारे मृदा स्वस्थ होगा। यूरिया का उपयोग कम करते हुए जैविक खाद का मात्रा बढ़ाने से मृदा (मिट्टी) कोमल होता है तो जड़ का विकास अच्छी तरह से करता है। और जल धारण क्षमता बढ़ता है , मिट्टी कोमल होने से भु गत जल स्रोत मे जल भराव अच्छा होता है, जिस वजह से बरसात के दिनों में अच्छी बारिश होती है। जैविक खेती से हमारे पर्यावरण के साथ साथ हमारे स्वास्थ्य पर भी अच्छा असर होता है।

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