कानो में रामलीला के शब्द से हो गई शायरी , शायर इरफान जाफ़री

बिलासपुर पिछले दिनों बिलासपुर एक संगोष्ठी में आये शायर इरफान जाफ़री से मुलाकात हुई बकौल जाफ़री सातवी कक्ष में लिखा शेर आज 45 साल बाद भी कायम है दरार नाम से लिखी नज्म आज भी इरफान जाफ़री को याद और उनका कहना है कि उनको नहीं पता ये उसवक्त उन्होनेकैसे लिखी सातवी क्लास में लिखी नज्म की कुछ लाइने शायर इरफान ने सुनाइ की जब कभी आसमान में घटा छाए , एक उम्मीद की की अब बरसे तब बरसे पर न बरसे मेरे जेहन के बंजर खेत झुलझे के हर दरार से मेरे यादों की सीता निकले राम के वनवास में साथ देने इरफान जाफ़री का मानना है आज पढ़ने और पढ़ाने वालो की कमी है शायरी या कविता समुंदर से मोती निकालने जैसा है ये नही की छोटी सी नाव निकाली पतवार चलाई और शायरी ले आये दसअसल आज कविता सुनने वाले के हिसाब से चल रही है इससे सत्तर खराब हो रहा है शायरी और कविता ने हमेशा से समाज कीगंदगी पर झाड़ू लगाने का काम किया है आज शब्दो ककी समझ मे कमी आती जा रही है मैन जो कविता लिखी वो भी हमारे गांव के आसपास होने वाली रामलीला की ही एक किश्त जो जेहन में घूमते रहती थी

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