दुखी कांग्रेसी की पाती, जिले में हार के बाद सेल्फ गोल, कांग्रेस का स्कोर डाउन।

बिलासपुर ,चुनाव में हार के बाद बिलासपुर कांग्रेस में “सेल्फ गोल” का खेला…! चुनाव जिताने वाले निशाने पर… टिकट दिलाने वाले दायरे से बाहर…?
हाल ही में हुए नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा है। तमाम संस्थाओं में बीजेपी के जन प्रतिनिधि काबिज हो चुके हैं। लेकिन पराजय के बाद कांग्रेस के भीतर नया खेला चल रहा है। जिसे देखकर लगता है कि कांग्रेस के लोग “सेल्फ गोल” कर अपना स्कोर बनाने में जुट गए हैं। चुनाव के बाद जिस तरह मीडिया में खबरें छप रही है उससे लगता है कि ऐसे नेता निशाने पर हैं जो उलट हवा के बावजूद कांग्रेस को चुनाव जिताकर लाने में कामयाब रहे। जबकि दूसरी तरफ संगठन के पदों पर काबिज ओहदेदार जीत – हार की जिम्मेदारी के दायरे से बाहर दिखाई दे रहे हैं। संगठन की ओर से अब तक ना तो इसकी समीक्षा की गई है और ना ही इसकी कोई चर्चा नजर आ रही है।
हाल के दिनों में हुए नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में पूरे छत्तीसगढ़ की तरह बिलासपुर जिले में भी भाजपा ने परचम लहराया। कांग्रेस को बड़े शहरों में जहां शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा वहीं छोटे शहर और गांवों में भी उम्मीद के हिसाब से कामयाबी नहीं मिल सकी। हालांकि चुनाव नतीजे सामने आने के बाद राजनीतिक समीक्षक मानते रहे कि बीजेपी के पक्ष में एकतरफा लहर ने जमीनी स्तर पर भी कांग्रेस का सफाया किया। लेकिन इस चुनाव की एक खासियत यह भी रही कि अधिक आबादी वाले शहरी इलाकों ( नगर निगम ) में जहां बीजेपी को रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल हुई, वही उतरते क्रम पर छोटे शहर यानी नगर पालिका, नगर पंचायत होते हुए पंचायती राज संस्थाओं की ओर बढ़ें तो कांग्रेस के उम्मीदवार अपने-अपने इलाकों में बीजेपी के विजय रथ को रोकने में कुछ हद तक कामयाब भी दिखाई देते हैं। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव की समीक्षा करते हुए यह भी गौर करने वाली बात है की नवंबर- दिसंबर महीने में माहौल देखकर कहा जा रहा था कि प्रदेश में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी चुनाव टालने के मूड में है। चूंकी पार्टी को इन चुनावों में बेहतर नतीजे की उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। फिर भी अगर बीजेपी ने एकतरफा जीत हासिल की है तो कांग्रेस की चुनावी रणनीति भी सवालों के घेरे में आ रही है। जिसके चलते नगरीय निकाय और पंचायत क्षेत्र के मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में कांग्रेस कामयाब नहीं हो सकी। इसकी झलक चुनाव नतीजे के बाद भी मिलती रही है। जब मीडिया में खबरों का दौर शुरू हुआ ।
चुनाव के बाद बिलासपुर जिले में जिस तरह की कार्रवाई हुई वह अनोखी मानी जा सकती है। चुनाव के तुरंत बाद ताबड़तोड़ कार्रवाई कर पार्टी के लोगों को निष्कासित किया गया। एक दिन में 59 लोगों के खिलाफ कार्यवाही का रिकॉर्ड भी सामने आया। जिसमें जिला कांग्रेस अध्यक्ष विजय केशरवानी ने प्रदेश प्रवक्ता सहित कई पदाधिकारियों को निष्कासित कर दिया। इसके बाद कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा कर दी । इस तरह की कार्रवाई होने के बाद पार्टी के अंदर एक तरह से खलबली मच गई और अपनी ही पार्टी के नेताओं को निशाने पर रखकर खबरें मीडिया तक पहुंचाई गई। बिलासपुर नगर निगम से मेयर के प्रत्याशी रहे प्रमोद नायक भी इसकी जद में आए ।
बिलासपुर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भी इसी तरह की रस्साकशी सामने आई। हालांकि जिला पंचायत की 17 सीटों पर भाजपा के 9 सदस्य चुनकर आए। कांग्रेस के चार अधिकृत प्रत्याशी जीते और तीन सीटों पर कांग्रेस के ही निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर आए। एक सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को जीत हासिल हुई। जाहिर सी बात है कि बिलासपुर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी निर्विरोध जीत हासिल कर सकती थी। लेकिन जिला पंचायत और ग्रामीण क्षेत्र की राजनीति करने वाले कांग्रेस नेताओं ने बीजेपी को इस चुनाव में चुनौती देने की रणनीति बनाई। इस चुनाव में राजेन्द्र शुक्ला पर्यवेक्षक बनाए गए। साथ में जितेन्द्र पाण्डेय,संजू मक्कड़ और राजेन्द्र धीवर प्रभारी बनाए गए। इसके बाद कांग्रेस ने जिला पंचायत अध्यक्ष / उपाध्यक्ष के चुनाव में अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस को 8 वोट मिल गए। हालांकि कांग्रेस क्रॉस वोटिंग कराने में नाकाम रही । लेकिन चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर जरूर दी।
यह अब तक भले ही पर्दे के सामने ना आया हो कि जिला पंचायत के चुनाव में एकजुटता साबित करने में कामयाब रही कांग्रेस की इस रणनीति के पीछे संगठन के पदाधिकारियों की कितनी भूमिका रही और इसके पीछे कांग्रेस का भला चाहने वाले जिला पंचायत – ग्रामीण क्षेत्र की राजनीति में माहिर किन नेताओं ने अपना किरदार निभाया ? लेकिन इस चुनाव के बाद जिस तरह जिला कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और 2018 में बिल्हा विधानसभा सीट में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे राजेंद्र शुक्ला को निशाने पर लेकर खबरें आई है, उसे उसे देखकर समझा जा सकता है कि पार्टी के भीतर किस तरह की कसमकश चल रही है। दिलचस्प बात यह भी है कि जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में राजेंद्र शुक्ल की पत्नी श्रीमती अनीता राजेंद्र शुक्ला सर्वाधिक 8 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से जीत कर जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुई है। ऐसे में पार्टी के अंदर सम्मान मिलने की बजाय उन पर भितरघात और साजिश के आरोप से जुड़ी खबरें आई । बिल्हा विधानसभा सीट से टिकट की दावेदारी करने वाले तिफरा ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष लक्ष्मीनाथ साहू की पत्नी भी पार्षद चुनाव जीतकर आई है । चुनाव जीतने के एक महीने बाद उनकी शिकायत सामने आई। बिल्हा यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील साहू को कांग्रेस ने बोदरी नगर पालिका अध्यक्ष का उम्मीदवार बनाया। जो चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे। उनके खिलाफ गुंडा एक्ट की कार्रवाई भी चर्चा में रही। अब पार्टी के अंदर यह सवाल भी उठ रहा है कि उन्हें टिकट दिलाने वाले नेताओं पर जिम्मेदारी तय नहीं हो रही है। इसके उलट अन्य नेताओं पर आरोप मढ़कर क्या उसके पीछे छिपने की कोशिश की जा रही है ।
एक दिलचस्प तस्वीर यह भी देखी जा सकती है कि बिल्हा के जिस इलाके से कांग्रेस की श्रीमती अनीता राजेन्द्र शुक्ला जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुईं हैं, उस इलाके से 6 जनपद पंचायत सदस्य चुनकर आए हैं। उनकी हार का ठीकरा भी राजेन्द्र शुक्ला के सिर पर ही फूट रहा है। जबकि बिल्हा में संगठन की कमान सियाराम कौशिक और गीतांजली कौशिक के हाथों में है। मस्तूरी जनपद पंचायत में बीजेपी का अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित हुआ और उपाध्यक्ष पद पर कांग्रेस ने निर्विरोध चुनाव जीत लिया । इस तरह के गठजोड़ पर चर्चा नहीं बनी। ऐसे ही तखतपुर और दूसरे ब्लॉक में भी बीजेपी ने निर्विरोध जीत हासिल की । इस पर भी सुर्खिया नहीं बन पा रहीं हैं। लेकिन चुनाव जिताने वाले राजेन्द्र शुक्ला निशाने पर हैं।
बिलासपुर के स्थानीय चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के भीतर “सेल्फ गोल” कर स्कोर बढ़ाने की होड़ मची है , इसके पीछे खेमेबाजी साफ देखी जा सकती है। लेकिन यह खेला क्यों और किसके इशारे पर चल रहा है…? यह सवाल सबसे दिलचस्प है। विधानसभा, लोकसभा और स्थानीय चुनाव में लगातार पराजय के बाद जिला कांग्रेस में फेरबदल की खबरें भी समय-समय पर आती रही है। चुनाव में हार के बाद आ रही ख़बरों को आपस में जोड़ने से इस सवाल को भी जगह मिल रही है जो भी हो लेकिन चुनाव के बाद हार की समीक्षा और खामियों को सामने लाकर उनसे सबक लेने की बजाय कांग्रेस के अंदर चल रहे सेल्फ गोल के इस खेल में दिलचस्पी लेने वालों का स्कोर भले ही बढ़ रहा हो मगर पार्टी का स्कोर तो नीचे जाता हुआ नज़र आ रहा है।

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