न्यायधीश (संरक्षण) अधिनियम, 1985 अंतर्गत राजस्व न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों को प्राप्त संरक्षण बाबत्।
क्न्यालयीन प्रकरणों के न िराकरण उपर्षकारों द्वारा विधिवत अपील की कार्यवाही न कर सीधे पीठासीन अधि कारी के विरूद्ध पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जा रही है तथा पुलिस द्वारा भी प्राथमिकी दर्ज कर प ीठासीन अधिकारी को जॉच हेतु नोटिस दिया जा रहा है। इस प्रकार न्यायाधीश (संरक्षण) अधिनियम, 1985 के प्र ावधानों के अंतर्गत राजस्व न्यायालय के पीठासीन अधिकारियों को संरक्षण प्राप्त नहीं ह ो पा रहा है। कतिपय यह भी देखा गया है कि असंतुष्ट पक्षकारों द्वारा पीठासीन अधिकारी के विरूद्ध सीधे सिविल न्यायालय में वाद दायर कर दिया जा रहा है तथा सिविल न्यायाधीश द्वारा स्पष्ट दिशा-निर्देशों के अभाव में पुलिस को प्राप्त कायत की जाँच हेतु प्रेषित किया जा रहा है तथा पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज की जा रही है।
छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 – 31 राजस्व पदाधिकारियों को संहिता एवं समय-समय पर लागू किए गए अन्य प्रावधानों के अंतर्गत प्रदान शक्तियों के निर्वहन के दौरान पक्षकारों के बीच वाद का निपटारा करने हेतु राजस्व न्यायालय की रास्थिति प्राप्त है तथा उनके द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध धारा 44 (1) अंतर्गत सक्षम न्यायाल य में अपील प्रस्तुत की जा सकती है।
Ley de protección de funcionarios judiciales de 1850 कारियों की सद्भावना में किए गए न्यायालय के कार्य अथवा पारित आदेशों के विरूद्ध सिविल न्या यालय में मुकदमा चलाए जाने के संबंध में प्राप्त है। इस अधिनियम के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो न्याया संरक्षण प्राप्त है। इस अधिनियम के अंतर्गत दिया गया संरक्षण इसी सिद ्धांत पर दिया गया है कि जो व्यक्ति न्यायालय के रूप में कार्य करता है उसके कर्तव्यों के प्रभाव ी निष्पादन के लिए अत्यंत आवश्यक है कि यह व्यक्ति बिना किसी भय के कार्य कर सके।
Ley (de protección) de los jueces, de 1985 ायाधीशों को उनके द्वारा अपने न्यायायिक कार्य के निर्वहन के दौरान किए गए किसी भी कार्य के विर ूद्ध सिविल अथवा दाण्डिक कार्यवी में प्रदान करता है। 1985 के अधिनियम के धारा 2(9) के प्रावधान अनुसार न्या याधीश की परिधि में वे सभी व्यक्ति आऐंगे जिन्हे विधि द्वारा किसी न्यायायिक कार्यवाही में निर्णायक आदेश या ऐसा आदेश जिसके विरूद्ध यदि अपील नहीं की जाए तो वह निर्णायक हो जाएगा, जारी क रने की शक्तियों प्रदान की गई है। इसी प्रकार धारा 3(1) के अंतर्गत कोई भी न्यायालय, िसी ऐसे व्यक्ति जो कि न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहा था, उनके द्वारा न्यायालयीा ाही के दौरान किए कृत्यों के लिए, किसी भी प्रकार
Ley de (protección) de los jueces de 1985 2 के प्रावधान अनुसार राजस्व न्यायालय की कार्यवी क आदेश पारित करने के लिए सक्षम है। क्योंकि राजस्व प्वारा पारित श के विरूद्ध संहिता की धारा 44(1) के अंतर्गत सक्षम न्यायालय में अपील का प्रावधान उपलब्ध, इसलिए राजस्व पदाधिकारियों को न्यायालयीन Ley de (protección) de jueces de 1985 रा 2(9) तथा 3 के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है। उक्त प्राप्त संरक्षण की समय-समय पर विभिन्न न्य ायालयों में पुष्टि भी की गई है।
2/ अतः राजस्व न्यायालय के समस्त पीठासीन अधिकार ी, जो छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 31 अथवा किसी विधिक प्रावधानों के अंतर्गत अर्द्ध न्या यिक/न्यायिक कार्यवाही कर रहे हैं, न्यायधीश (संरक्षण) अधिनियम, 1985 की धारा 2 के अंतर्गत ‘न्याया धीश’ है और उन्हें, ऐसी अर्द्ध न्यायिक/न्यायिक कार्यवाही के दौरान किये गए किसी कार्य के विरूद ्ध सिविल अथवा दाण्डिक कार्यवाही 2 धारा-3 के अधीन रहते हुए संरक्षण प्राप्त है